लखनऊ | जनपद में प्रिंटिंग व्यवसाय करने वाले सभी पंजीकृत प्रेस वर्तमान में सूचना जनसंपर्क विभाग उत्तर प्रदेश द्वारा जारी नवीन दिशा निर्देशों के कारण बन्दी की कगार पर आ गये है और व्यवसाय से जुड़े अनेक लोग बेरोजगार होने की तरफ अग्रसर हैं। सूच्य हो कि सूचना एवं जनसंपर्क विभाग उत्तर प्रदेश ने विभागीय प्रकाशनों के मुद्रण हेतु निजी प्रिंटिंग प्रेसों का पंजीकरण अपने विभाग में कर रखा है। इन प्रेसों को तीन श्रेणियों (क, ख, ग) में विभाजित किया गया था जिनको समय समय पर सूचना विभाग द्वारा मुद्रण का कार्य आवंटित किया जाता है। श्रेणी ‘क’ में लगभग 29 प्रेस पंजीकृत थे जो वर्ष 2002 के शासनादेश संख्या -299/उन्नीस-2-2002-18-2002 दिनांक 2 मई 2002 के तत्क्रम में आंशिक रूप से संशोधित शासनादेश संख्या- 496/19-2-2002-18/2002 दिनांक 31 मई 2002 के नियमानुसार कार्य कर रहे थे। दिनांक 27 फरवरी 2018 को निदेशक सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग, उत्तर प्रदेश के पत्र संख्या 712/सू.एवं ज.स.वि.(प्रका.)-14/96 के द्वारा कैबिनेट में ये प्रस्ताव लाया गया कि प्रचार प्रसार की आवश्यकता, कार्य की तात्कालिकता एवं मुद्रण तकनीकी में आये बदलावों के कारण कुछ संशोधन किया जाना आवश्यक है। निदेशक के ऊपर कुछ चहेते और प्रभावशाली प्रेस मालिकों ने दबाव बनाकर संशोधन के लिए कैबिनेट में भेजे के प्रस्तावों में अपने हिसाब से ऐसे बिंदुओं को शामिल कराया जिससे पूर्व में विभाग में पंजीकृत मुद्रकों के साथ साथ अन्य कोई नया मुद्रक भी शामिल न हो पाए और वे अपने हिसाब से मनमाने रेट्स पर कार्य करते रहें। जब इस टेंडर को प्रकाशित किया गया और प्रेसों से सूचीबद्ध के लिए प्रस्ताव मांगें गए तो 90 प्रतिशत प्रेस संस्थाएँ इन कठोर और षडयंत्रकारी नियमों के विरुद्ध न्यायालय की शरण में जाना ही उचित समझा। अपुष्ट जानकारी से ज्ञात हुआ है कि निविदा जमा करने की अंतिम तिथि 12 सितंबर थी मगर विभाग ने इस टेंडर को सोची समझी रणनीति के तहत निरस्त कर प्रेस मालिकों के न्यायालय के द्वार को भी बंद करने की कोशिश भी की है। जानकारी के अनुसार सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में प्रिंटिंग कार्य हेतु सप्लाई किये जाने वाले कागज में भी घोर कमीशन बाजी चलती है, कागज को बाजार मूल्य के लगभग 60प्रतिशत अधिक मूल्य पर खरीदकर सरकार के कोष पर अतिरिक्त भार डाला जा रहा है एवं इसकी शिकायत करने वालों के पत्रों को भी सप्लाई करने वाली फर्म अपने प्रभाव से दबवा देती है।
सरकार की दमनकारी नीतियों के चलते प्रिंटिंग व्यवसाय बंदी की कगार पर
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