इलाहबाद | मित्रों जय श्रीकृष्ण, जैसा कि आप सब नूतन वर्ष 2018 के दूसरे माह फरवरी में प्रवेश कर चुके हैं | इस माह में महाशिवरात्रि का पावन पर्व 13 फरवरी को है | यह महादेव की उपासना का पर्व है | ऐसे में मन में भाव आया की भूतभावन भोलेनाथ की महिमा का कुछ गुणानुवाद अपनी गति और मति के अनुसार करके महादेव की इस महारात्रि पर उनके चरणों भाव पुष्प अर्पित करने का प्रयास करूं | वैसे तो आदि,मध्य और अन्त से परे शिव तत्व बहुत ही गूढ़ है | मुझ जैसे साधारण मानव का परम् सत्ता पर कुछ लिखना एक प्रकार से बालपन के समान है | लेकिन इसी बहाने भूत भावन परम् वैष्णव भगवान शंकर की चर्चा हो जायेगी, यह समझकर अपने मनोविनोद के लिये कुछ लिख रहा हूं | विद्वज्जन को यदि कोई त्रुटि लगे तो क्षमा करें |
मां शारदा की कृपा रहे तो मेरी कोशिश रहेगी की मै महाशिवरात्रि व्रत के दिन तक आप सबके समक्ष नित्य नये-नये शीर्षकों की व्याख्या अपने टूटे-फूटे शब्दों से कर सकूं |
तो जाने, क्या है महादेव की महिमा नामक इस श्रृंखला के प्रथम दिन ”शिव तत्व” नामक शीर्षक की व्याख्या आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं, उम्मीद है कि आप सब को यह प्रयास रुचिकर लगेगा |
|| शिव तत्व एवं स्वरूप ||
सम्पूर्ण जीवों का अन्तिम विश्रामालय शिव ही है | ”विश्रामस्थानमेकम्” | “शीङ् स्वप्ने” धातु से ‘शिव’ शब्द की सिद्धि है | ‘शेरते प्राणिनो यत्र स शिव: ‘ — अनेकों पापो से आक्रान्त होकर विश्राम के लिये जीव जहाँ शयन करें, बस उसी सर्वाश्रय को शिव कहा जाता है |
‘शिव’ शब्द परमानन्द परमात्मा का वाचक है | इसका उच्चारण बहुत ही सरल, सुमधुर और स्वाभाविक ही शान्तिदायक है | शिव शब्द का अर्थ परम मंगल, परम कल्याण जानना और समझना चाहिये | इस आनन्ददाता, परम कल्याणकारी शिव को शंकर भी कहते हैं | ‘शं’ आनन्द को कहते हैं और ‘कर’ से करने वाला समझा जाता है, अत: जो आनन्द करता है वही ‘शंकर’ है | ये सब लक्षण उस नित्य अपरिमेय परम् ब्रह्म के ही हैं |
इस तरह से इस रहस्य को जानकर शिव की श्रद्धा-भक्तिपूर्वक उपासना करने से उनकी कृपा से उनका तत्व, जो मानव मस्तिष्क से परे है वह समझ में आ जाता है | जो पुरुष शिव-तत्व को जान लेता है उसके लिये फिर कुछ भी जानना शेष नहीं रह जाता | शिव-तत्व को शैलतनुजा भगवती पार्वती यथार्थ रूप से जानती थीं, इसीलिये छद्मवेशी स्वयं शिव के बहकाने से भी वे अपने सिद्धांत से तिल मात्र भी नहीं टलीं | उमा-शिव का यह संवाद बहुत ही उपदेशप्रद और रोचक है |
और कहा तक कहूं, रामचरित मानस में भगवान राम ने कहा है —
शंकर प्रिय मम द्रोही सिव द्रोही मम दास |
ते नर करहिं कलप भरि घोर नरक महुँ बास ||
औरउ एक गुपुत मत सबहि कहउँ कर जोरि |
शंकर भजन बिना नर भगति न पावइ मोरि ||
इसी प्रकार ब्रह्मवैवर्त पुराण में भगवान कृष्ण भी भगवान शिव से कहते हैं —
त्वत्परो नास्ति मे प्रेयांस्त्वं मदीयात्मन: पर: |
ये त्वां निन्दन्ति पापिष्ठा ज्ञानहीना विचेतस: ||
पच्यन्ते कालसूत्रेण यावच्चन्द्रदिवाकरौ |
कृत्वा लिङ्ग सकृत्पूज्य वसेत् कल्पायुतं दिवि |
प्रजावान् भूमिवान् विद्वान् पुत्रबान्धववांस्तथा ||
भावार्थ है कि ‘मुझे आपसे बढ़कर कोई प्यारा नहीं है, आप मुझे अपनी आत्मा से भी अधिक प्रिय हैं | जो पापी, अज्ञानी पुरुष आपकी निन्दा करते हैं, वे जब तक चन्द्र और सूर्य का अस्तित्व रहेगा, तबतक वे नरक में रहेंगे | जो शिवलिङ्ग का निर्माण कर एक बार भी उसका पूजन कर लेता है, वह दस हजार कल्प तक स्वर्ग नें निवास करता है | शिवलिङ्ग की अर्चना से मनुष्य को प्रजा
, भूमि, विद्या, पुत्र, बान्धव, श्रेष्ठता, ज्ञान एवं मुक्ति सब कुछ प्राप्त हो जाता है |
शिव का सगुण स्वरूप भी इतना विलक्षण, मधुर और मोहक है कि उन पर परमात्मा की सम्पूर्ण सृष्टि मोहित है | भोलेनाथ की तेजोमयी दिव्य मङ्गलमयी मूर्ति को देख कर स्फटिक, कर्पूरखण्ड, दुग्ध, चन्द्रमा सभी लज्जित होते हैं |
भगवान की ऐसी सर्वमनोहारिता है कि सभी उनके उपासक हैं | संसार में माँगने वाला किसी को अच्छा नहीं लगता, उसको सभी घृणा की दृष्टि से देखते हैं | परंतु, भूतभावन भोले शंकर तो आक, धतूर, अक्षत,बिल्वपत्र, जल मात्र चढ़ाने, गाल बजाने से ही संतुष्ट होकर सब कुछ देने को तैयार हो जाते हैं |
सदाशिव का भक्त भगवान को एक ही बार प्रणाम करने से अपने को मुक्त मानता है | भगवान भी ‘महादेव’ ऐसे नाम उच्चारण करने वाले के प्रति ऐसे दौड़ते हैं जैसे वत्सला गौ अपने बछड़े के प्रति — महादेव महादेव महादेवेति वादिनम् |
वत्सं गौरिव गौरीशो धावन्तमनुधावति ||
जोपुरुष तीन बार ‘महादेव,महादेव,महादेव’ इस तरह भगवान का नाम उच्चारण करता है, भगवान एक नाम से मुक्ति देकर शेष दो नाम से सदा के लिये उसके ऋणी हो जाते हैं—
महादेव महदेव महादेवेति वादिनम् |
एकेन मुक्तिमाप्नोति द्वाभ्यां शम्भू ऋणी भवेत् ||
आपु आपु कहँ सब भलो अपने कहँ कोइ कोइ | तुलसी सब कहँ जो भलो सुजन सराहिअ सोइ ||
अर्थात् स्वयं अपने लिये सभी भले हैं (सभी अपनी भलाई करना चाहते हैं), कोई-कोई अपनों की भलाई करने वाले होते हैं | गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैंं कि जो सबकी भलाई करने वाला (सुहृद) है साधुजनों के द्वारा उसी की सराहना होती है | कहने तात्पर्य है कि भोले भण्डारी मुँहमाँगा वरदान देने में कुछ भी आगे-पीछे नहीं सोचते, जरा सी भक्ति करने वाले पर भी भगवान आशुतोष के हृदय का दयासिन्धु उमड़ पड़ता है | इस रहस्य को समझने वाले व्यङ्ग्य से ‘भोलेनाथ’ कहा करते हैं | ऐसे भोलेनाथ शंकर को जो प्रेम से नहीं भजते, वास्तव में शिव के तत्व को जानते नहीं हैं, अतएव उनका मनुष्य जन्म लेना ही व्यर्थ है | इससे अधिक उनके लिये और क्या कहा जाय | भक्त चाहे जिन किन्ही भी साधनों से उपासना प्रारम्भ करता है, उसी मार्ग से वे उपासक को सफल बनाते हुये सभी प्रकार की सिद्धियों तथा परसिद्धि-रूप अपने आपको भी प्रदान कर उसे हर प्रकार कृतकृत्य एवं सुखी कर देते हैं |
मित्रों ये तो थी ‘शिव तत्व’ की व्याख्या, जो भी इस दास से हो सका वह आपके सामने रखा ये इति श्री नहीं है क्योकि यह तत्व अनिर्वचनीय है | आगे का शीर्षक है ‘शिवोपासना’ हरि कृपा बनी रही तो आपके सामने कल प्रस्तुत करने की कोशिश करूंगा |
|| जय श्री कृष्ण, जय माँ शारदा || आचार्य नागेश दत्त द्विवेदी , श्री शारदा ज्योतिष कार्यालय, राजरूपपुर, प्रयाग ||
|| महाशिवरात्रि निर्णय ||
परेद्युर्निशीथेकदेश व्याप्तौ पूर्वेद्यु: संपूर्ण तदव्याप्तौ पूर्वैव | निशिथकाल यानि शिवरात्रिपर्व का काल रात 11:48 से 12:40 तक है | दूसरे दिन चतुर्दशी रात 12:26 तक ही होने से पूरे काल में नहीं है | अत: प्रथम दिन तारीख 13 फरवरी दिन मंगलवार को महाशिवरात्रि व्रत होगा |
|| जय श्री कृष्ण, जय माँ शारदा ||
आचार्य नागेश दत्त द्विवेदी, श्री शारदा ज्योतिष कार्यालय, राजरूपपुर, प्रयाग |
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