जनपद के सभी कस्बों, बाजारों व गांवों में शारदीय नवरात्र की तैयारी कई दिन से चल रही थी। मूर्तिकारों के यहां से आकर्षण भव्य रूप वाली दुर्गा प्रतिमायें बड़ी श्रद्घा व उल्लास केसाथ श्रद्घालुओं ने पाण्डालों तक पहुंचाने का काम किया। जिसका सिलसिला बुधवार की देर शाम तक चलता रहा, प्रतिमाओं को पंडालों में स्थापित कर दिया गया है। दुर्गा पूजा केविषय में अथर्ववेद में वर्णन मिलता है कि माता दुर्गा का पूजन करना इसलिए और अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि पृथ्वी से लेकर समस्त देवी देवताओं का अधिष्ठïान भगवती दुर्गा में है। इसलिये मां दुर्गा का पूजन कर लेने से सभी देवी देवताओंं के पूजन का फल मिल जाता है। दुर्गा सप्तशती के दूसरे अध्याय में भी वर्णन है कि सभी देवी देवताओं के तेज से भगवती दुर्गा प्रकट हुई है, मां दुर्गा के नौ रूप माने गये है, जिनमे 1-शैलपुत्री, 2-ब्रह्मïचारिणी, 3-चन्द्रघण्टा, 4-कुष्माण्डा, 5-कन्दमाता, 6-कात्यायनी, 7-कालरात्रि, 8-महागौरी तथा 9-सिद्घदात्री को नवरात्रों में दिन के इन्हीं क्रमों से नौ रूपों में पूजा की जाती है।
शास्त्रों में रात्रि काल की देवी पूजा का विशेष फल माना गया है क्योंकि देवी रात्रि स्वरूपा है, जबकि शिव को दिन स्वरूप माना गया है। इसलिये नवरात्र व्रत में रात्रि व्रत का विधान है। भक्ति और श्रद्घा पूर्वक माता की पूजा दिन और रात्रि में कभी भी की जा सकती है।
नवरात्र में उपासना का उत्सव शुरू हो रहा है। इस दौरान बहुत से लोग पूरे नौ दिनोंं का व्रत रखते है। नौ दिन तक चलने वाले इस व्रत के कई फायदे भी है जैसे उपवास करने से शरीर से विषाक्त पदार्थ बाहर निकल जाते है मानसिक तौर पर स्पष्टïता आती है। संयम का अ यास होता है और आध्यात्मिक विकास होता है। दुर्गा पूजा के लिये पूरे जिले में सैकड़ों स्थानों पर पंडालों को विद्युत झालरों से सजाकर पूजा-अर्चना की व्यवस्था की गयी है। नगर पंचायत सिराथू अझुवा, मंझनपुर, करारी, सरॉयअकिल, चायल सहित भरवारी में अच्छी व्यवस्था है। भरवारी में कई स्थानों पर भव्य पाण्डालों का आयोजन करके दुर्गा प्रतिमाओं को बुधवार को लाकर रखा गया। जिसको गुरूवार को विधि-विधान के साथ स्थापित किया जायेगा और कलश स्थापना केबाद मंत्रोच्चारण के साथ आरती की जायेगी। भरवारी में मां अ बे दुर्गा पूजा समिति खल्लाबाद, सार्वजनिक दुर्गा पूजा समिति नयी बाजार, हनुमंत निके तन दुर्गा पूजा कमेटी पुरानी बाजार, बड़े डांड बाबा दुर्गा पूजा कमेटी खल्लाबाद, भइयन बाबा दुर्गा पूजा कमेटी गौरारोड तथा मां भगवती जनसेवा समिति नयी बाजार के तत्वाधान में पूरा भरवारी नगर पंचायत मां की आराधना में डूबा रहेगा। इस प्रकार करें कलश स्थापना
कौशा बी। शारदीय नवरात्रि 21 सितंबर दिन गुरूवार से शुरू हो रहा है, पं. रजन मिश्र के अनुसार कलश स्थापना के लिए समय 11:23 से 12:30 तक बताया गया है। मां भगवती की महिमा के सामने किसी बर्तन में अथवा जमीन पर जौ उगाने के लिए रख दें। इसके बाद एक तरफ जल से भरा कलश स्थापित करें। इस कलश पर नारियल रखें। तत्पश्चात सबसे पहले श्री गणेश की पूजा इसके बाद वरूण देव, विष्णु देव, शिव, सूर्य, चन्द्र आदि नौ ग्रहों की पूजा अर्चना की जाती है। इस प्रकार विधि-विधान से कलश स्थापना होनी चाहिए।
नवरात्र व्रत से पूरी होती मनोकामनाएं
नवरात्र व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। इस व्रत को रखने वालों को धन चाहने वालों को धन, विद्या चाहने वालों को विद्या, सुख चैन चाहने वालों को सुख चैन तथा पुत्र चाहने वालों को पुत्र धन कर प्राप्ति होती है। इस व्रत को रखने से रोगी मनुष्य का रोग मुक्त हो जाता है। इस प्रकार तमाम विपत्तियों को दूर कर तमाम खुशियां लाने वाला नवरात्र व्रत बहुत महत्व रखता है।
कन्या पूजन से प्रसन्न होती हैं मां दुर्गा
नवरात्र पूजन से जुड़ी कई पर पराएं हैं, जैसे कन्या पूजन इसका धार्मिक कारण यह है कि कुवांरी कन्यायें माता के समान पवित्र और पूजनीय होती है। दो वर्ष से लेकर दस वर्ष की कन्यायें साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती है। यही कारण है कि इसी उम्र की कन्याओं के पैरों का विधिवत पूजन कर भोजन कराया जाता है। मान्यता है कि होम, जप और दान से देवी इतनी प्रसन्न नही होती जितनी कन्या पूजन से। ऐसा कहा जाता है कि विधिवत, स मान पूर्वक कन्या पूजन से व्यक्ति के हृदय से भय दूर हो जाता है साथ ही उसके मार्ग में आने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती है। उस पर मां की कृपा से कोई संकट नही आता मां दुर्गा उस पर अपनी कृपा बरसाती है।
व्रत में रखें इन बातों का ध्यान
व्रत रखने का तात्पर्य भूखा रहने से नही होता। ईश्वर की सच्ची भक्ति के लिए मनुष्य को पूजा- अर्चना के साथ व्रत रखना चाहिए, जो खाने की वस्तुओं का त्याग करने के साथ-साथ पूरे शरीर का व्रत रखना चाहिए, जिसमें आंख, कान, मुंह, हाथ-पैर भी नियंत्रित होने चाहिए।
आंख के व्रत रखने का मतलब यह है कि कोई भी स्त्री पुरूष व्रत के दौरान एक-दूसरे पर निगाह न डालें। इसमें भाई-बहन माता-पिता शामिल नही हैं। निगाहें नीची होनी चाहिए, ताकि समाज में तमाम होने वाली बुराईयों से बचा जा सके।
कान के व्रत रखने का मतलब यह है कि किसी की बुराई हेा रही हो तो उधर ध्यान देकर न सुने और अपने कानों को भजन-कीर्तन आदि सुनने के लिए होना चाहिए।
जीभ के व्रत रखने का तात्पर्य यह है कि व्रत केदौरान किसी की बुराई किसी को अपशब्द व ऐसी बातें न कहें जिससे अनावश्यक रूप से किसी को दुख पहुंचे।
पैर के व्रत रखने का यह तात्पर्य है कि व्रत रखने वाले श्रद्घालु बुरे कामों की ओर न जाकर अच्छाई की ओर चलें और हाथ भी उन कामों से बचें जिससे किसी का नुकसान हो और किसी की आत्मा को दुख पहुंचें। व्रत के दौरान श्रद्घालुओं को चाहे वे स्त्री हो या पुरूष वस्त्र ऐसे धारण करना चाहिए जिससे उनकेअंगों का प्रदर्शन न हो और हर तरह से शरीर ढका रहना चाहिए, यदि इन बातों को ध्यान में रखकर व्रत रखा जाये तो अवश्य ही व्रत रखने वालों को ईश्वर, देवी-देवताओं की आराधना करते समय पूरी शक्ति प्राप्त होगी।
शैलपुत्री के रूप में आज पूजी जाएंगी मां दुर्गा
नवरात्रि के पावन पर्व के प्रथम दिन गुरूवार के दिन पहली शक्ति के रूप में मां दुर्गा की शैलपुत्री के रूप में विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की जाएगी। इन रूपों के पीछे तात्विक अवधारणाओं का परिज्ञान धार्मिक सांस्कृति एवं सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है।
मां दुर्गा को सर्व प्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। हिमालय के यहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण शैलपुत्री के रूप में हुआ। इन्हें देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है। शैलपुत्री ने दाहिने हाथ में त्रिसूल धारण कर रखा है, और बांये हाथ में कमल सुशोभित है। इन्हें सती के नाम से भी जाना जाता है।
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