मोहर्रम का चांद नजर आने के बाद रात से ही इमाम बारगाहों में चिरा$गां करने के साथ ही अगरबत्ती जलाकर अज़ादारों ने कर्बला के शहीदों को नज़रे अ$कीदत पेश किया। शुक्रवार मोहर्रम की पहली तारी ा से शुरुआत हो गयी है। सुबह से ही लोगों ने अपने घरों में मजलिसों का दौर जारी कर दिया है और या हुसैन, या हुसैन की सदाओं से सारा माहौल गमगीन हो गया।
बतादें कि मोहर्रम की पहली तारीख शुक्रवार से शुरु हुयी, जिसमें मातम मर्सिया, नौहा व मजलिसों का दौर शुरु हुआ, जो दिन भर जारी रहा। जिले में अजादारी बनाने के कई बड़े केन्द्र हैं, जिसमें मु यालय स्थित मंझनपुर के अलावा करारी, सरॉयअकिल, तैंबापुर, दारानगर, अफजलपुरवारी, नारा, कड़ा, अझुवा, चायल, भरवारी, मुस्तफाबाद, पुरखास मु य केन्द्र माने जाते हैं। इसके अलावा सैकड़ों गांव में मोहर्रमदारी की जाती है। दोआबा में मोहर्रम मनाने की परंपरा खिल्जी वंश के दौर में शुरु हुयी थी, जिन्होनें वाजा कड़क की दरगाह में कर्बला भी बनवाया है, जहां आज भी लोग अकीदत के साथ हाजिर होकर अपने संकट को दूर करने के लिए दुआ मांगते हैं। खिल्जी वंश के जलालउद्ïदीन खिल्जी ने कड़ा को अपनी राजधानी बनायी, तभी से दोआबा में अजादारी शुरु हुयी, जिसको मुगल शासन काल में व्यापक उरूज मिला, जिसमें ताजिया के साथ ढोल-नगाड़ा बजाने व मातम व मर्सिया पढऩे का सिलसिला जारी हुआ, जो इस समय पूरे अकीदत के साथ दोआबा में मनाया जा रहा है।
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