यह सर्वविदित और सर्वमान्य तथ्य है कि भक्ति का आधार गुरू द्वारा प्रदत्त ज्ञान है और मुक्ति का आधार गुरू चरणों की सेवा इसीलिए गुरू को साकार ब्रह्म की संज्ञा दी गई है। गुरू चरणों की सेवा से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष रूपी चारों पदार्थ प्राप्त होते है। गुरू चरणों में स्वयं को लय कर लेना भक्ति की पराकाष्ठा है। उक्त बातें मंचासीन भइया लाल निरंकारी ने मु यालय में आयोजित कार्यक्रम में कही है।
भइया लाल निरंकारी ने आगे कहा कि गुरू की महत्ता ईश्वर से भी अधिक मानी जाती है। श्री रामचरित मानस में कहा गया है कि तुमसे अधिक गुरूहीं जिय जानि, सकल भाव सेवहीं सनमानि अर्थात गुरू की सेवा सर्वोपरि सेवा है। मानव जीवन का उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना ही है और मोक्ष, तपस्या या कर्मकाण्ड के द्वारा स भव नहीं है। जब तक सदगुरू के द्वारा ब्रह्म का ज्ञान न प्राप्त हो और सदगुरू की कृपा न प्राप्त हो, क्योंकि यह शास्त्र स मत तथ्य है कि ध्यान मुलम गुरू मूर्तियं ज्ञान मूलम गुरू वाक्यम भक्ति मूलं गुरू पदं मोक्ष मूलं गुरू कृपा अर्थात ध्यान या सुमिरण गुरू के साकार रूप ही योग, तपस्या पूजा है। ज्ञान अर्थात ब्रह्म ज्ञान गुरू के श्रीमुख से निकला हुआ शब्द है। वेद का वाक्य भी यही सिद्ध करता है कि प्रज्ञानम् ब्रह्म। अर्थात ब्रह्म का ज्ञानी ही ब्रह्म है। भक्ति का आधार गुरू के श्रीचरण है। गुरू जब अपनी समस्त शुभ भावनाओं को अपने भक्त में समाहित कर देता है अर्थात कृपा करता है तो भक्त मुक्तावस्था प्राप्त करता है। उसका मानव जीवन सफ ल हो जाता है। वह आवागमन से मुक्त होकर परम अवस्था में स्थापित हो जाता है। निष्कर्श यह है कि पूर्ण सदगुरू कृपा की से अखिल ब्रह्माण्ड के स्वामी ईश्वर का बोध प्राप्त कर गुरू के आशय के अनुसार भक्ति पथ पर चलना ही मुक्ति का आधार है और यही आदिकाल से आज तक सुगम और सत्य मार्ग है। इसी पर चलकर ही जीवन का उद्देश्य पूर्ण होगा और मोक्ष भी प्राप्त होगा।
Add Comment