खानकाहे अरिफि या में आयोजित मासिक महफ ़िल मौलाए काइनात में दर्दनाक अजाब से निजात का रास्ता विषय पर मु ती मोह मद किताबुद्दीन रिजवी विचार व्यक्त करते हुये कहा है कि दुनिया में कोई भी व्यक्ति बिना गम के नहीं है और अगर कोई दुखी नहीं है, तो वह इंसान नहीं है। कुछ लोगों को दुनिया का दु:ख है, किसी को जहन्नम से बचने का ग़म, किसी को स्वर्ग के हूर को पाने का ग़म तो किसी को अपने बनाने वाले को मनाने का ग़म। हर इंसान के जीवन में परेशानी है, एक समस्या है और पीड़ा का सामना करना पड़ रहा है।
उन्होंने कहा कि सब से बड़ी मुसीबत आखिरत की परेशानी है, इसलिए दुनिया के सारे ग़म स्वीकार कर लें लेकिन आखिरत का छोटा सा भी घाटा स्वीकार न करें। दुनिया और आखिरत दोनों मुसीबतों से हमें बचना है लेकिन अगर ऐसी घड़ी हो जहां दुनिया और आखिरत की परेशानी से एक मुसीबत को स्वीकार करना अनिवार्य हो तो दुनिया की सारी परेशानी स्वीकार कर लें। मरने के बाद वाली मुसीबत को स्वीकार नहीं करें।
इस महीने की महफि़ ल में मगरिब से ईशा तकरीरी प्रोग्राम चला। शुरुआत में कारी सरफ राज सईदी शिक्षक जामिया अरिफि या ने कुरान पढ़ी। उसके बाद जामिया अरिफि या के एक छात्र ने नात ए नबी प्रस्तुत किया। फि र मु ती रहमत अली मिस्बाही शिक्षक जामिया अरिफि या को आमंत्रित किया गया। अच्छे गुमान और दूसरों के बारे में नेक विचार के बारे में आप ने कुरान से बहुत अच्छा भाषण दिया, आपने कहा कि बदगुमानी ऐसा पाप है जो अपने अंदर कई पापों को रखता है। इसलिए बदगुमानी करने से केवल कुरान की एक आयत नहीं बल्कि कुरान की कई आयतों की खिलाफ वर्जी होती है। उसके बाद मौलाना रिफ ़अत रज़ा नूरी ने अल्लामा इक़बाल का प्रसिद्ध वचन लौह भी तू कलम भी तू तेरा वजूद अलकिताब को बेहतरीन आवाज में सुनाया । हजऱत मु ती मोह मद किताबुद्दीन रिजवी साहब ने दर्दनाक अंदाज से निजात का रास्ता विषय पर बयान फ रमाया। आप ने अपने भाषण में सूरह अलसफ की रौशनी में कहा कि अल्लाह ने इस आयत में अजाब ने निजात दिलाने वाली तिजारत के बारे में बताया है। इंसानी स्वभाव है कि वो लाभ प्राप्त करने से अधिक नुकसान से बचने को महत्व देता है और कोशिश करता है कि जहां तक हो सके नुकसान से बचा जाए, इसलिए हमें चाहिए कि ऐसी चीज़ों से बचने की कोशिश करें जो नरक तक पहुंचा दे। इमान के ताल्लुक से बताते हुए आपने कहा कि अल्लाह व रसूल ने जो कुछ कह दिया उसे स्वीकार कर लेंं। यदि कोई बात उसके समझ लेने के बाद मानी जाए तो इसमें कहने वाले की खुसूसियत नहीं रह जाती। अब जबकि अल्लाह और उसके रसूल को मान चुके हैं तो बात समझ में आए या न आए उस पर विश्वास करना जरूरी है।
दाई ए इस्लाम शेख अबू सईद शाह एहसानुल्लाह मोह मद सकवी सज्जाद नशीन खानकाहे अरिफि या की दुआओं के साथ यह कार्यक्रम संपन्न हुआ और ईशा की नमाज के बाद महफि ़लए समा आयोजित हुई और अगले महीने की महफिल की घोषणा 11 नव बर की हुई। महफिल के बाद लंगर आम का इंतिजाम हुआ, जिसमें खानकाह में आए तमाम लोगों ने एक आंगन में बैठ कर खाना खाया।
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