नई दिल्ली। अखबारों में फर्जी, अपुष्ट या सुनी सुनाई खबरें छापने से पहले मीडिया घरानों को सोच विचार करना होगा। यदि कोई फेक न्यूज पाई गई तो उस समाचार संगठन का विज्ञापन रोक दिया जाएगा। यदि पुरानी खबरों में भी कोई गलत खबर पाई गई तो विज्ञापन नहीं मिलेगा। केंद्र सरकार डीएवीपी की विज्ञापन नीति -2016 में फेरबदल करने वाली है। यह फेरबदल मीडिया में शुचिता लाने के लिए किया जा रहा है। वैसे तो, सामान्य तौर पर प्रतिष्ठित अखबार फर्जी खबर नहीं छापते, लेकिन कभी-कभी कुछ मीडिया संस्थानों की तरफ से ब्लैकमेल करने या बदनाम करने की मंशा से झूठी खबरें छापने या खबरों को तोड़-मरोड़कर छापने की शिकायतें मिलती रहती हैं। भारतीय प्रेस परिषद को इस तरह की शिकायतें मिलती हैं और परिषद उनकी निंदा करती रही है। तमाम सलाह मशविरे के बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने फेक न्यूज से निपटने को विज्ञापन नीति में फेरदबदल का प्रस्ताव किया है।
प्रिंट मीडिया में ब्लैकमेलिंग व फवर्जीवाड़े पर केंद्र सरकार सख्त, बदले नियम
डीएवीपी की विज्ञापन नीति 2016 में होगा फेरबदल
इसके मुताबिक, विज्ञापन नीति-2016 के अनुबंध-25 में परिवर्तन किया जा रहा है। अनुबंध को फिर से परिभाषित किया जा रहा है। इसमें अनैतिक व गलत धारणा से प्रकाशित या फर्जी खबर पाए जाने को भी जोड़ा जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि डीएवीपी इस काम में प्रेस कौंसिल और पीआईबी की मदद ले सकता है। इससे पहले डीएवीपी ने गलत और पत्रकारिता के मूल्यों का उल्लंघन करने वाले कुछ अखबारों का विज्ञापन दो महीने के लिए रोका था, लेकिन यह प्रेस कौंसिल की सिफारिश पर किया गया था। अब सरकार विज्ञापन नीति में ही प्रावधान करने जा रही है ताकि फर्जी और ब्लैकमेल करने वाली खबर छापने से पहले बार-बार सोचें। एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने प्रावधान का समर्थन करते हुए कहा कि क्या मीडिया के अंदर जिम्मेदारी का अहसास नहीं होना चाहिए। यदि कोई गलत कामों में लिप्त रहता है तो उसे रोकने के लिए नियम कानून बनाये जाते हैं। मालूम हो कि केंद्र की तरफ से सभी विज्ञापन डीएवीपी के जरिए अखबारों में प्रकाशित होते हैं। प्रसार संख्या और राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय और भाषायी आधार पर अखबारों को विज्ञापन दिए जाते हैं। पिछले एक साल से सरकार ने मीडिया में चल रहे फर्जीवाड़े को रोकने की कोशिश की है। पहले चरण में ऐसे अखबारों को हटाया गया जो सिर्फ विज्ञापन लेने के लिए छपते थे। दूसरे चरण में अनैतिक खबरें चलाने वाले अखबारों के विज्ञापन रोके गए और अब तीसरे चरण में विज्ञापन नीति में ही परिवर्तन किया जा रहा है।
ये है नियम : अनुबंध-25 में निलंबन और वसूली से संबंधित प्रावधान हैं। वर्तमान प्रावधानों के मुताबिक (ए) जानबूझकर गलत प्रसार संख्या बताना, (बी) जानबूझकर या बिना अनुमति के अखबार की अवधि में बदलाव करना या अनियमित प्रकाशन करना (सी) आरएनआई के पास वार्षिक रिटर्न जमा न करना, (डी) देशहितों के खिलाफ खबर लिखना, (ई) अदालत से सजायाफ्ता होना और (एफ) सरकारी विज्ञापन छापने से मना करने पर डीएवीपी किसी भी अखबार का इम्पैनलमेंट निलम्बित कर सकता है और उसके विज्ञापन रोक सकता है।
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