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कोहरा और धुँआ स्वांस रोगियों के लिए प्राण घातक : डॉ. आशीष टंडन

इलाहाबाद 16 नवंबर । वरिष्ठ दमा एवं स्वांस रोग विशेषज्ञ डॉ आशीष टंडन ने आज पत्रकारों से वार्ता के दौरान कहां की कोहरा और धुँआ सांस रोगियों के लिए प्राण घातक साबित हो सकता है।

उन्होंने कहा कि जाड़े का मौसम यूं तो स्वांस रोगियों के लिए स्वयं ही खतरनाक होता है सांस की बीमारियां जाड़ों में कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती हैं परंतु जब कोहरा होता है उस वक्त वाहनों इंडस्ट्री एवं निर्माण कार्य से निकलने वाली धूल गर्दा कोहरे के साथ मिलकर स्वांस रोगियों के लिए प्राण घातक हो जाता है और यदि समय से उपचार न किया गया तो स्वांस रोगियों के लिए यह अत्यंत घातक साबित होता है ।

डॉ टंडन ने कहा कि प्रदूषण की वजह से सबसे ज्यादा स्वांस फेफड़े और दिल की बीमारियां होती हैं ! उन्होंने बताया कि एम्स के नए रिसर्च के अनुसार डीजल वाहनों एवं औद्योगिक इकाइयों तथा कंस्ट्रक्शन कंपनियों के द्वारा जिस तरह पर्यावरण प्रदूषण हो रहा है वह आने वाली पीढ़ी को गैस चेंबर के हवाले कर रहा है इन प्रदूषण के कारण ब्रांकाइटिस सीओपीडी एवं फेफड़े का कैंसर अत्यधिक मात्रा में हो रहा है यहां तक कि अब तो बच्चों और नौजवानों मैं भी फेफड़े के कैंसर की बात सामने आ रही है ऐसे कई केस स्वयं मेरे सामने आ चुके हैं !

 

डॉ टंडन ने बताया किमाइक्रोसॉफ्ट के अनुसार आने वाले समय में यदि पर्यावरण प्रदूषण इसी प्रकार लगातार जारी रहा तो पृथ्वी आग के गोले में तब्दील हो जाएगी डॉ टंडन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के द्वारा पटाखे चलाए जाने पर जो प्रतिबंध लगाया गया है उसके सार्थक परिणाम सामने आए हैं और इस बार दीपावली पर 90% पटाखों के द्वारा उत्पन्न होने वाले प्रदूषण में कमी आई है !

उन्होंने कहा कि वाहनों के द्वारा निकलने वाले धुएं पटाखों के द्वारा निकलने वाले धुएं और नमी कोहरा मिलकर स्मॉग पैदा करता है जिसकी वजह से सबसे ज्यादा लोग सीओपीडी के मरीज होते जा रहे हैं इसकी वजह से फेफड़ों की नली में सूजन आ जाती है ।

डॉ टंडन ने कहा कि लोगों को या बहुत बड़ा भ्रम है कि धूम्रपान करने वालों को ही फेफड़ों और स्वांस की बीमारी होती है परंतु ऐसा नहीं है धूम्रपान न करने वाले भी बड़े पैमाने पर स्वांस रोगी होते जा रहे हैं लोग घरों में पूजा पाठ करते समय लोग अगरबत्ती एवं धूपबत्ती जलाते हैं मच्छरों को भगाने के लिए लोग मॉस्किटो क्वायल जलाते हैं ग्रामीण इलाकों में खाना बनाने के लिए महिलाएं बड़े पैमाने पर गोबर के उपले एवं लकड़ियां चलाती हैं जिस से निकलने वाले धुएं से बड़े पैमाने पर लोग सीओपीडी के मरीज होते जा रहे हैं इन्हें पैसिव स्मोकिंग से होने वाली बीमारी कहा जाता है !

डॉ आशीष टंडन ने बताया कि सांस की बीमारी ज्यादा बढ़ने पर मांसपेशियों में सूजन आ जाती है जिससे शरीर के विभिन्न अंगों में बहुत ज्यादा दर्द होने लगता है कैल्शियम की भी कमी हो जाती है जिसकी वजह से हड्डियों एवं तमाम जॉइंट्स पर दर्द होने लगता है तथा खून की कमी भी होने लगती है वजन बढ़ने लगता है जिससे घुटने एवं पैरों में बहुत ज्यादा दर्द एवं सूजन भी आ जाती है और शुगर की भी बीमारी जुड़ जाती है इन तमाम समस्याओं के चलते व्यक्ति अपना नियमित कार्य नहीं कर पाता नौकरी एवं काम धंधा घरेलू कार्य नहीं कर पाता जिससे विषम सामाजिक संकट उत्पन्न हो जाता है !

उन्होंने कहा कि स्वांस रोगियों को चाहिए कि वह समय रहते अच्छे चिकित्सक की सलाह ले कर उचित दवाएं एवं उपचार शुरू कर दे नहीं तो सीओपीडी के चलते आगे चलकर दमा और फेफड़ों का कैंसर होने का भी खतरा हो जाता है ! डॉ टंडन ने कहा कि रोज नए रिसर्च हो रहे हैं नए जेनरेशन की जो दवाएं आ रहे हैं वह ज्यादा कारगर एवं साइड इफेक्ट रहित होती हैं !

एक प्रश्न के जवाब में डॉ टंडन ने कहा कि सरकार को चाहिए कि वहतत्काल संज्ञान ले और वाहनों की बढ़ती संख्या पर रोक लगाई यदि अकेले इलाहाबाद के यहां खड़े उठाकर देखें जाएं तो लगभग 300 वाहनों का प्रतिदिन आरटीओ ऑफिस में रजिस्ट्रेशन होता है यह आंकड़े राष्ट्रीय स्तर पर देखे जाएंगे तो बहुत ज्यादा वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है जिन से निकलने वाला धुआं प्रदूषण का बहुत बड़ा कारण हो रहा है लोगों को चाहिए कि व्यक्तिगत वाहनों का प्रयोग कम करके मांस ट्रांसपोर्ट का प्रयोग करें सरकारी गाड़ियों बसों आज आदि का प्रयोग करें जिससे प्रदूषण कम से कम हो सके निर्माण कार्य के दौरान लोग कहीं भी लोक ढककर निर्माण नहीं करते जिसके कारण धूल गर्दा सीमेंट भाव बहुत ज्यादा मात्रा में उड़ती है और लोग उससे प्रभावित होते हैं जबकि नियमितता जहां निर्माण कार्य हो रहा है पन्नियों से चारों तरफ से उसे धक्का जाए जिससे धूल सीमेंट इत्यादि उड़े ना वहीं पर निर्माण स्थल पर ही उसे रोका जा सके

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