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|| कालसर्पयोग ||

इलाहबाद  -प्रख्यात ज्योतिषाचार्य नागेश दत्त द्विवेदी ने कालसर्प योग के बारे में बताते हुए कहा की हमारी कुंडली में कई योग बनते हैं, जिनमें से कुछ शुभ तो कुछ अशुभ, वहीं कुछ योग ऐसे भी होते हैं जो हमें राजा बना सकते हैं तो कुछ की भयंकरता हमें जीवन भर मुसीबतों से बाहर नहीं आने देती। आज हम बात करेंगे इन्हीं योगों में से एक कालसर्प योग की जिसे सामान्य भाषा में कालसर्प दोष भी कहा जाता है। यह एक ऐसा योग है जो कुंडली के जिस भी हिस्से में बनता है उस हिस्से के ग्रहों को कार्य करने से रोक देता है|
जब कुंडली के सभी ग्रह राहु और केतु के बीच में आ जाते हैं तो यह कालसर्प योग या कालसर्प दोष की रचना होती है। इस योग का प्रमुख लक्षण व प्रत्यक्ष प्रभाव मानसिक अशांति के रूप में प्रकट होता है | भाग्योदय में बाधा, संतान सुख में अवरोध, गृहस्थ जीवन प्रतिदिन कलहपूर्ण, धन प्राप्ति में बाधा, किये गये परिश्रम का उचित प्रतिफल न प्राप्त होना, बुरे स्वप्न आना, स्वप्न में सर्प दिखना एवं हर समय कुछ अशुभ होने की आशंका बनी रहती है | तो निश्चित ही कुण्डली में कालसर्प योग पूर्ण रूप से है |

|| कालसर्प योग के प्रकार ||
सामान्यतौर पर बस कालसर्प योग को ही जाना जाता है, ये बहुत ही कम लोग जानते हैं कि ये योग भी 12 प्रकार का होता है| प्रचीन विद्वानों ने अनन्त, कुलिक, वासुकी, शंखपाल, पद्म्, महापद्म, तक, कर्कोटक, शंखचूड, घातक, विषधर तथा शेष नामक 12 प्रकार के कालसर्पयोगों का विश्लेषण किया है | श्रेणी के अनुसार ही इसका प्रभाव कम, ज्यादा या भयावह होता है। लेकिन जैसे-जैसे जानकारी बढ़ी तो व्यवहारिक परीक्षणों से पता चला कि अलग-अलग लग्नों में घटित होने वाले अलग-अलग प्रकार के अनन्तादि कालसर्पयोग का अलग-अलग प्रकार से घटित होगा | कुण्डली में 12 लग्न और 12 भाव है तो एेसे मे दोनो का गुणा करने पर 144 प्रकार के कालसर्पयोग बनते हैं | इसमें भी उदित गोलार्ध एवं अनुदित गोलार्ध के भेद से यह संख्या द्विगुणित हो जाती है और कालसर्पयोगों की कुल संख्या 288 प्रकार की बनती है | एेसे में जातक
को किसी योग्य ज्योतिषी की सहायता से जानकारी प्राप्त कर शान्तिपरक उपाय जानने चाहिए और उसको योग्य कर्मकाण्डी ब्राह्मण से सम्पादित करवाना चाहिए |
|| इस योग के परिणामों को लेकर प्रचलित भ्रांतिया || कुछ ज्योतिषी साथी जातकों को यह कहते है कि एक विशेष आयु के बाद इस योग से होने वाली परेशानियों से छुटकारा मिल जाता है पर इस बात का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता | कालसर्पयोग को ग्रहण योग भी मानते है तो एेसे मे उसका भला-बुरा प्रभाव जातक पर होता ही है | अत: कालसर्पयोग के परिणाम उस योग के शास्त्रीय निवारण तक भोगने ही पड़ते हैं | कुछ नास्तिक ज्योतिषी कालसर्पयोग को तो मानते हैं पर उसके शास्त्रीय जप, दान रूपी शांति के विधान को नहीं मानते हैं| इस क्षेत्र के विषय पर अधिकार न होने के चलते जातकों को अनावश्यक उपाय बताते है| एेसे लोग अग्नि को तो मानते है पर उसकी उष्णता को नकारते हैं | नास्तिक ज्योतिषी शब्द से मेरा कहना उन लोगों को कहना है जो ब्राह्मणेतर है | संस्कार की कमी के कारण एेसे लोग मंत्रतन्त्र विद्या एवं प्रार्थना की शक्ति से अनभिज्ञ होते हैं तथा अनुष्ठान, तपोबल या आशीर्वाद के द्वारा यजमान के भाग्य को पलटने या फिर ये कहे कि उसका कल्याण करने की क्षमता नहीं रखते | अत: सात्विक ब्राह्मण ही कर्मकाण्ड का अधिकारी है इस बात को सदैव ध्यान में रखना चाहिए | शास्त्रकार कहते हैं- ”पूर्वं जन्मकृतं पापं, व्याधिरूपेण बाधते | तत् शान्तिरौषधैर्दानै: जप श्राद्धादि कर्मभि: || अर्थात् पुर्नजन्म में किये गये पाप इस जन्म में व्याधि, बाधादि के रूप में प्रकट होते हैं | उसका परिहार जप, दान श्राद्ध व शांति कर्म से ही संभव है |
|| कालसर्पयोग शांति विधान || ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जातक की कुण्डली का परीक्षण करवाले | राहु के अधिदेवता काल और प्रत्यधिदेवता सर्प है | शास्त्र के मतानुसार ग्रह की शान्ति के लिए अधिदेवता व प्रत्यधिदेवता की पूजा करनी चाहिए | राहु, काल और सर्प तीनों की पूजा, मंत्रजप, दशांश हवन, ब्राह्मण भोजन, दान आदि से करना आवश्यक है | यह काम्य विधि है इसके लिये मुहूर्त जरूरी है | यह शांतिकर्म नदी के किनारे, श्मसान, शिव जी का मंदिर जैसे स्थानों पर करवाने से परिणामदायक होता है| लेकिन यदि इन स्थानों के साथ-साथ नागतीर्थ हो तो फल प्राप्ति में विलंब नहीं होता | आजकल कुछ पुरोहित अपने ही घरों में , यजमानों के घरों में अौर अपने मनचाहे स्थानों में विधि सम्पन्न कराते हैं जो कि बिलकुल अनुचित है | एेसे में जातक उचित अनुचित का निर्णय अपने विवेक से करे क्योकि व्यक्ति गलत हो सकता हमारे शास्त्र नहीं| सच्चे मन से श्रद्धापूर्वक शास्त्रीय तरीके से किये गये सदा फलित होते है |

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