लखनऊ । उत्तर प्रदेश के गोरखपुर व फूलपुर लोकसभा सीटों के उपचुनाव में बुआ-बबुआ (मायावती-अखिलेश) ने हाथ मिलाकर भाजपा को चरो खाने चित कर दिया।
मतदान के करीब एक हफ्ते पहले मायावती ने अचानक घोषषणा की कि वह दोनों सीटों पर अपने प्रत्याशी नहीं उतारेंगी और सपा प्रत्याशियों का समर्थन करेंगी।
यहीं से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर व यूपी के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के गढ़ फूलपुर में भाजपा की शिकस्त नजर आने लगी थी।
सीएम योगी के लिए गोरखपुर की हार करारा झटका है, क्योंकि वह अपनी इस सीट से पांच बार लोकसभा में जा चुके थे। यूपी के सीएम बनाए जाने पर उन्होंने यहां से इस्तीफा दिया, इसलिए उपचुनाव हुए। यहां सपा के प्रवीण निषषाद ने भाजपा के उपेंद्र दत्त शुक्ल को 21,881 वोटों से हराया।
वहीं सांसद पद से इस्तीफा देकर राज्य के उपमुख्यमंत्री बने केशव प्रसाद मौर्य के लिए भी फूलपुर में पार्टी की हार मुसीबत का सबब है। यहां से सपा के नागेंद्र प्रताप सिंह पटेल ने भाजपा के कौशलेंद्र सिंह पटेल को 59,613 वोट से हराया। यहां से जेल में बंद बाहुबली अतीक अहमद भी प्रत्याशी थे उन्हें 33,818 वोट मिले जबकि कांग्रेस के मनीषष मिश्रा ने 11,934 वोट पाए।
उपचुनाव में भाजपा की लगातार तीसरी हार
राजस्थान : एक फरवरी को राजस्थान की दो लोकसभा सीटों और एक विधानसभा सीट पर हार का सामना करना पड़ा था।
मध्यप्रदेश : 28 फरवरी को मप्र के मुंगावली व कोलारस विस उपचुनाव में भी पार्टी की शिकस्त हुई थी।
1993 के बाद पहली बार साथ आए सपा-बसपा
उप्र में 1993 में सपा-बसपा ने एकजुट होकर चुनाव लड़ा व सरकार बनाई थी। उसके 25 साल बाद 2018 में दोनों दल एकजुट हुए हैं, हालांकि अभी कोई औपचारिक गठबंधन नहीं हुआ है।
हार-जीत के निहितार्थ
भाजपा : उत्तर–पूर्व में मजबूत हो रही है, पर उत्तर–पश्चिम व मध्य भागों में कमजोर। पार्टी को 2019 के लिए व्यापक बदलाव व नई रणनीति बनाना पड़ेगी।
सपा-बसपा : उप्र में अन्य सभी विपक्षी दलों से विधिवत गठबंधन कर 2019 के आम चुनाव में फिजां बदल सकते हैं।
कांग्रेस : विपक्षी एकता में जुटी कांग्रेस क्षेत्रीय दलों से फिर गठजोड़ कर तीसरे मोर्चे या महागठबंधन को आकार दे सकती है।
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