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अविश्वास प्रस्ताव को लेकर पूर्व लोकसभा महासचिवों में मतभेद

 

 

नई दिल्ली  ।  संसद में हंगामा सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस की मंजूरी में बाधा हो सकता है अथवा नहीं, इस पर लोकसभा के पूर्व महासचिवों की राय अलग-अलग है।

पूर्व लोकसभा महासचिव पीडीटी आचार्य का कहना है कि अविश्वास प्रस्ताव को अन्य प्रस्तावों की तरह स्वीकार नहीं किया जा सकता। यह विशेष प्रस्ताव होता है और स्पीकर को सिर्फ सदस्यों को इसकी जानकारी भर देनी होती है।

अगर प्रस्ताव सही (दस्तावेज नियमानुसार) है तो स्पीकर इस पर कार्यवाही आगे बढ़ा सकती हैं। अगर सदन की कार्यवाही सुचारू नहीं है तो भी नोटिस को स्वीकार किया जा सकता है।

अगर एक बार 50 सदस्य प्रस्ताव के समर्थन में खड़े हो जाते हैं तो स्पीकर को सिर्फ चर्चा का दिन और समय तय करना होता है।

हालांकि, लोकसभा के एक अन्य पूर्व महासचिव बाल शेखर की राय जुदा है। उनका कहना है कि सदन में हंगामे की वजह से नोटिस की कार्यवाही आगे बढ़ाने में व्यावहारिक दिक्कतें आती हैं।

जब सदन में सदस्य अपनी सीटों पर खड़े हों और सदन के वेल में भी, तो प्रस्ताव के समर्थन में खड़े 50 सदस्यों की गिनती करना मुश्किल हो जाता है। चूंकि प्रस्ताव पर मतदान नहीं होता सिर्फ समर्थक सदस्यों की गिनती होती है, इसलिए अगर सदस्य विरोध प्रदर्शन के लिए खड़े हैं न कि प्रस्ताव का समर्थन करने के लिए तो सत्ता पक्ष गिनती पर सवाल उठा सकता है।

नाम न छापने की शर्त पर एक पूर्व लोकसभा महासचिव ने भी कहा कि अगर सदन की कार्यवाही सुचारू नहीं होगी तो प्रस्ताव के समर्थक सदस्यों की गिनती कैसे होगी।

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