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अपने आप में अनूठी होती है मुट्ठीगंज की दुर्गा पूजा

9 दिन होता है देवी के अलग-अलग शक्तियों का भव्य श्रृंगार
महापौर अभिलाषा गुप्ता 1 अक्टूबर को करेंगी मां अन्नपूर्णा प्रसाद मेले का उद्घाटन

प्रयागराज । नवरात्र में सनातन संस्कृति के अनुसार मां दुर्गा का हर घर में पूजन अर्चन श्रृंगार आरती आदि होती है परंतु पश्चिम बंगाल में नवरात्र के अवसर पर सार्वजनिक स्थल पर पंडाल लगाकर भव्य सामूहिक पूजन का आयोजन किया जाता है जो कालांतर में बंगाली समाज के साथ देश के विभिन्न स्थानों तक फैल गया और अपने प्रयागराज में भी कई दशकों से भव्य दुर्गा पूजा के आयोजन विभिन्न स्थानों पर किया जाता है परंतु इनमें से मुट्ठीगंज में आयोजित दुर्गा पूजा का जो अनूठा स्वरूप यहां दिखता है वह पूरे प्रयागराज क्या पूरे देश में अनूठा माना जाता है
उल्लेखनीय है कि बंगाली समाज के द्वारा जो सार्वजनिक दुर्गा पूजन का आयोजन किया जाता है उसमें मूर्ति का स्वरूप एक होता है और उनके यहां छठवीं से नवमी तक पूजन होती है दसवीं को विसर्जन होता है यानी मात्र 4 दिन माता का एक ही रूप का पूजन होता है परंतु मुट्ठीगंज की दुर्गा पूजा इसीलिए पूरे देश में अनूठी मानी जाती है क्योंकि यहां नवरात्रि के प्रथम दिन से ही पूजन शुरू हो जाती है जो नवमी तक चलती है नवमी को ही यहां डोला उठता है जिसमें मां स्वयं पूरे इलाके में भ्रमण कर घर-घर भक्तों से मिलने जाती हैं और दशमी को उनका ( विसर्जन नहीं ) विदाई होती है । इस बीच प्रथम दिन से 9 दिन तक प्रतिदिन मां के अलग-अलग शक्तियों का भव्य श्रृंगार होता है यह नव रूप इतने भव्य होते हैं जिन्हें देखकर आम आदमी भाव विभोर हो जाता है और अलग-अलग रूपों के श्रृंगार की तैयारी पूरे वर्ष भर होती है दर्जनों कारीगर पूरे वर्ष भर इस श्रृंगार की तैयारी करते हैं ,बहुत बड़े पैमाने पर इसमें खर्च आता है जो भक्तों के सहयोग से पूर्ण होता है ।
इस संबंध में इस दुर्गा पूजा के आयोजक मुट्ठीगंज निवासी हरिश्चंद्र गुप्ता ( भाई जी ) से एक विशेष भेंट करके इसके विषय में विस्तार से चर्चा की गई जिसमें हरिश्चंद्र गुप्ता ( भाई जी ) ने बताया कि हमारी सनातन संस्कृति के अनुसार जो पूजा होती है उसमें और बंगाली समाज की पूजा में कुछ अंतर है जो निम्नवत है ।
उन्होंने बताया कि बंगाली समाज की पूजा युद्ध क्षेत्र की है इसलिए वह खुले मैदान में होती है और 10 भुजा के साथ देवी की प्रतिमा खड़ी होती है , हमारे यहां की पूजा भगवती की उपासना बेटी के रूप में होती है बेटी अपने मायके आई है इसलिए वह घर में बैठी अवस्था में होती है और अष्ट भुजाधारी होती है अष्टभुजा का मतलब पालक है जगत जननी पालनहार के रूप में घर में निवास करती है।
उन्होंने बताया कि शास्त्री परंपरा में वार्ता और भोजन बैठकर करने का विधान है इसलिए हमारे यहां माता की प्रतिमा बैठी अवस्था की होती है वह अपने मायके में है भोजन वार्ता बैठकर करती है।
उन्होंने बताया कि बेटी अपने घर में है जो रुखा सुखा भी मिल जाए उसमें वह संतुष्ट होती है इसलिए उपासना पद्धति में भी जो मिल जाए आप उसे अर्पण कर दें कोई विधि विधान नियम कानून यहां लागू नहीं होता वह सभी प्रकार से संतुष्ट होती हैं ।
हरिश्चंद्र गुप्ता ने बताया कि बंगाली समाज की पूजा अकाल पूजा मानी जाती है माता शयन कर रही है यह पूजा का समय नहीं है परंतु मूल नक्षत्र में छठवें दिन आवाहन करके उन्हें जगाया जाता है और श्रवण नक्षत्र में उनका दशमी को विसर्जन किया जाता है
उन्होंने बताया कि हमारे यहां प्रतिपदा यानी पहले दिन से ही पूजा शुरू हो जाती है और दशमी के दिन श्रवण नक्षत्र में समापन होता है परंतु हमारे यहां माता का विसर्जन नहीं होता, बेटी अपने घर ( मायके )आई थी इसलिए उनकी विदाई होती है । इस बीच प्रथम दिवस से ही पूजा शुरू हो जाती है नवो दिन मां की अलग-अलग शक्तियों का श्रृंगार पूजन होता है उन्होंने कहा कि हमारे यहां मां के अलग-अलग रूप होते हैं वह मां दुर्गा की नौ शक्तियां हैं।
शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी ,कालरात्रि ,महागौरी, सिद्धिदात्री, हम इन शक्तियों का श्रृंगार पूजन करते हैं जिस दिन जिस शक्ति का जो स्वरूप होता है उस दिन उसका श्रृंगार उसी प्रकार किया जाता है दसवीं को उनका अपराजिता के रूप में पूजन होता है तब परिवार के अनुसार लोकाचार सामाजिक आचार के अनुसार विभिन्न कार्यक्रम के अनुसार उनकी विदाई होती है।
उन्होंने बताया कि इस बीच यह माना जाता है कि बेटी अपने घर आई है मोहल्ले / गांव घर के सभी लोगों से वह मिलना चाहती है परंतु बहुतेरे लोग आकर उनसे नहीं मिल पाते इसलिए 9 दिन वह स्वयं डोला पर सवार होकर सभी से मिलने उनके घर घर जाती है यह भाव की पूजा है जो बहुत भव्य रूप में होती है दसवें दिन वह अपने ससुराल विदा हो जाती है उसका विसर्जन हमारे यहां नहीं होता विदाई होती है ।
हरिश्चंद्र गुप्ता भाई जी ने बताया कि इस वर्ष 26 सितंबर से नवरात्रि प्रारंभ हो रही है पहले दिन आवाहन श्रृंगार , 27 को तपस्या श्रृंगार, 28 को छबीली सरकार (आदि राधा ) श्रृंगार, 29 को श्रृंगार गौरी (नौ गौरियों में प्रमुख ) 30 को काली 10 मुखी दसों दिशाओं में मुख्य श्रृंगार , 1 अक्टूबर को महालक्ष्मी श्रंगार (कोल्हापुर स्थित स्वरूप), 2 अक्टूबर को अति रौद्री भैरवी ( हड्डी श्रृंगार ) श्रृंगार होगा ।
इस दिन आरती के पश्चात भस्म आरती भी होती है और मां का जो श्रृंगार होता है उसमें मुकुट में मरा हुआ उल्लू हाथी घोड़ा सूअर गिद्ध सारस भैंसा आदि होते हैं और मुंडमाला गले में होती है हड्डियों से ही बने अस्त्र-शस्त्र भी मां धारण करती है।, 3 अक्टूबर को राजराजेश्वरी श्रंगार (रत्न जड़ित महारानी मुकुट और जड़ाऊ श्रंगार) होगा , 4 अक्टूबर को डोला श्रंगार (चांदी श्रृंगार होगा और 5 अक्टूबर को मां की विदाई होगी ।
उन्होंने बताया कि इस दौरान 9 दिन नियमित रूप से चार समय प्रसाद वितरण होगा जिसमें विभिन्न प्रकार के व्यंजन होंगे रात्रि 7:30 बजे नित्य श्रृंगार आरती होगी ।
उन्होंने बताया कि 1 अक्टूबर को महापौर अभिलाषा गुप्ता मां देवी अन्नपूर्णा प्रसाद मेले का उद्घाटन दोपहर 12:00 बजे करेंगी ।
एक प्रश्न के जवाब में हरिश्चंद्र गुप्ता (भाई जी) ने बताया कि यह समस्त आयोजन प्रसाद वितरण आदि भक्तों एवं दानदाताओं के सहयोग से होता है कोई भी व्यक्ति यहां आकर अपनी भक्ति एवं सामर्थ्य के अनुसार कुछ भी सहयोग व प्रसाद वितरण कर सकता है परंतु हमें पहले से सूचित करना होगा जिससे हम यहां उनकी सुचारू व्यवस्था कर सकें ।

 

 

 

 

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