कानपुर । चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए केंद्र सरकार एमबीबीएस (अंडर ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन) पाठ्यक्रम में बदलाव की तैयारी कर रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय इसे लागू कराने के लिए मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआइ) से सलाह मशविरा कर रहा है। मंत्रालय ने इस बाबत कुछ सुझाव भी दिए हैं। कोई अड़चन नहीं आई तो नया पाठ्यक्रम अगले सत्र से लागू हो सकता है।
देश में लंबे समय बाद एमबीबीएस पाठ्यक्रम में बदलाव की कवायद शुरू हुई है। अभी तक प्रथम वर्ष में छात्रों को सिर्फ थ्योरी ही पढ़ाई जाती है। नए पाठ्यक्रम में प्रथम वर्ष में पढ़ाई के साथ केस भी कराने का प्रस्ताव है। छात्रों को मरीजों के बीच भेजने का मकसद उन्हें प्रेक्टिकल नॉलेज दिलाना है ताकि उनकी योग्यता में निखार आ सके। एमबीबीएस पाठ्यक्रम में संशोधन पूरा होने की बात पहले ही एमसीआइ की चीफ कंसल्टेंट डॉ. एम. राजलक्ष्मी स्वीकार चुकी हैं।
एमसीआइ नए पाठ्यक्रम को वेबसाइट पर अपलोड करने से पहले कॉपीराइट कराएगी। इसके लिए एमसीआइ ने आवेदन कर रखा है। अनुमति मिलते ही पाठ्यक्रम को अपलोड कर दिया जाएगा
पाठ्यक्रम में बदलाव के साथ-साथ चिकित्सा शिक्षकों को अपडेट करने का भी प्रस्ताव है। इसमें शिक्षकों को अपडेट करने के लिए ट्रेङ्क्षनग प्रोग्राम कराने का भी प्रस्ताव है।
अभी इन विषयों को पढ़ते हैं छात्र
एनॉटमी, फिजियोलॉजी, बायोकेमिस्ट्री, पैथालॉजी, माइक्रोबायोलॉजी, फार्मांकोलॉजी, फोरेंसिक मेडिसिन, कम्युनिटी मेडिसिन, ईएनटी, आप्थाल्मोलॉजी, पीडियाट्रिक, मेडिसिन (त्वचा रोग एवं गुप्त रोग, मनोरोग) सर्जरी (दंत, एनस्थीसिया), आर्थोपेडिक (रेडियोलॉजी)।
पहले भी हुए हैं बदलाव
वर्ष 1997 में एमबीबीएस पाठ्यक्रम में बदलाव करते हुए प्रथम वर्ष की शैक्षणिक अवधि 18 माह से घटाकर 12 माह की गई थी।
विशेषज्ञों की राय
‘नए पाठ्यक्रम में पहले साल से ही रेडियोलॉजी और सर्जरी पढ़ाई जाएगी। इससे एमबीबीएस डॉक्टरों में क्लीनिकल इवैल्यूएशन में डायग्नोस्टिक और एनालिटिकल कंपीटेंस की जानकारी विकसित होगी।
‘अंडरग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन में बदलाव की जरूरत है। एमबीबीएस करने वाले छात्र पोस्ट ग्रेजुएट (पीजी) कोर्स करें, यह जरूरी नहीं है। एमबीबीएस के बाद प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों के लिए नया पाठ्यक्रम मददगार साबित होगा।
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