नई दिल्ली । वह सात, जनवरी 2011 का दिन था जब केंद्रीय सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी मंत्री के तौर पर 2जी घोटाले में हुए नुकसान पर बयान देते हुए कपिल सिब्बल ने कहा था, ‘वास्तव में नुकसान तो जीरो था।’ शून्य हानि के उनके इस बयान से देश हैरान रह गया, क्योंकि 2जी लाइसेंस पानी वाली कई कंपनियां ने अपनी हिस्सेदारी बेचकर रातोंरात मालामाल हो गई थीं।
कपिल सिब्बल के इस बयान से कांग्रेस के नेतृत्व वाली मनमोहन सरकार की छवि को तो खासा नुकसान पहुंचा ही, खुद उनकी प्रतिष्ठा को भी हानि पहुंची। उन्हें जीरो लास वाला मंत्री कहा जाने लगा। उन्होंने यही काम एक बार फिर यह कहकर किया कि अयोध्या मामले की सुनवाई अगले आम चुनाव के बाद जुलाई 2019 में होनी चाहिए। बीते 5 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में यह दलील देकर उन्होंने देश को हैरान करने का काम किया, क्योंकि आम जनता यही चाह रही है कि अयोध्या मसले का निपटारा जल्द सुलझ जाए। सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में जन भावनाओं के विपरीत दलील देकर खुद के साथ अपनी पार्टी को भी मुश्किल में डाला है।
कांग्रेसी नेताओं की इस सफाई से न तो सिब्बल की मुश्किल कम हो रही है और न ही पार्टी की कि वकील के नाते वह कोई भी केस अपने हाथ में ले सकते हैं, क्योंकि 2010 में जब कांग्रेस के नेता और वकील अभिषेक मनु सिंघवी केरल हाईकोर्ट में लाटरी प्रमोटरों का केस लड़ रहे थे तो राज्य के कांग्रेसियों को यह रास नहीं आया, क्योंकि वे लाटरी प्रमोटरों को माफिया के तौर पर देख रहे थे। केरल के कांग्रेसियों की आपत्ति पर पहले तो अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि वह यह केस कांग्रेस प्रवक्ता नहीं, वकील की हैसियत से लड़ रहे हैं, लेकिन जब पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने भी आपत्ति जताई तो उन्होंने इस केस से हटने का फैसला किया।
कपिल सिब्बल ने अयोध्या मसला टालने की दलील देकर गुजरात में ठीक चुनाव के मौके पर भाजपा के मन की मुराद पूरी करने वाला काम किया है। भाजपा का यह सवाल गुजरात में कांग्रेस के लिए मुसीबत बन सकता है कि आखिर राहुल गांधी कैसे शिवभक्त हैं कि उनकी पार्टी के नेता राम मंदिर के निर्माण की राह में रोड़े अटका रहे हैं?
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