शनिदेव परम कल्याणकर्ता न्यायाधीश और जीव का परमहितैषी ग्रह माने जाते हैं। कहते हैं जन्म जन्मान्तर तपस्या के बाद अविद्या और माया से प्रभावित होकर जो लोग बुरे कर्म करने लगते हैं और तप पूर्ण नही कर पाते हैं, उनकी तपस्या को सफ़ल करने के लिये शनिदेव भावी जन्मों में पुन: तप करने की प्रेरणा देते हैं। ज्योतिष के अनुसार द्रेष्काण कुन्डली मे जब शनि और चन्द्रमा एक दूसरे को देखते हैं तो व्यक्ति को उच्च कोटि का संत बना देते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि शनि पूर्व जन्म के तप को पूर्ण करने के लिये इंसान को ईश्वर की ओर प्रेरित करते हैं ताकि वर्तमान जन्म में उसकी तपस्या सफ़ल हो जाये। शनि तप करने की प्रेरणा देता है।
जिस को भी शनि ग्रह अपनी कृपा द्रष्टि डालता है उसको पहले कष्टों से तपाता है। पदम पुराण में राजा दशरथ के माध्यम से बताया गया है कि शनि तप करने के लिये मनुष्य को जंगल तक पंहुचा देता है परंतु यदि वह तप में मग्न रह कर माया मोह में नहीं फंसता तो शनि उनकी सहायता करता है और सारे कष्टों को दूर करके प्रभु के दर्शन करा देता है। इसका उल्टा होने पर शनिदेव उन पर कुपित हो जाते हैं और समस्यायें खड़ी कर देते हैं।
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