मुम्बई । बांबे हाई कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि किसी न्यायिक अधिकारी के खिलाफ आरोपों को साबित करने के लिए सबूत हैं, तो लिखित शिकायत और हलफनामा नहीं होने के बावजूद विभागीय जांच की जा सकती है। सोमवार को जस्टिस आरएम सावंत और एसवी कोटवाल की खंडपीठ ने इसी के साथ सिविल जज (जूनियर डिविजन) आसिफ तहसीलदार की याचिका खारिज कर दी। तहसीलदार ने हाई कोर्ट रजिस्ट्रार द्वारा 15 जुलाई, 2017 को दो अलग-अलग आरोपों में उनके खिलाफ विभागीय जांच करने के आदेश को चुनौती दी थी।
पहला आरोप यह था कि जब तहसीलदार महाराष्ट्र के जालना जिले में सिविल जज थे, तो उन्होंने खुद के फायदे के लिए अपने पद का कथित रूप से दुरुपयोग किया। इससे राजकोष को नुकसान पहुंचा। दूसरा आरोप यह था कि जब तहसीलदार कोल्हापुर में जज थे, तो उन्होंने एक व्यक्ति पर कथित रूप से हमला किया और उसे झूठे केस में फंसाकर जेल भेज देने की धमकी दी।
तहसीलदार ने अपनी याचिका में दावा किया कि उनके खिलाफ विभागीय जांच सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है। इन दिशा-निर्देशों के मुताबिक किसी न्यायिक अधिकारी के खिलाफ जांच शुरू करने से पहले शपथपत्र के साथ लिखित शिकायत होनी चाहिए। तहसीलदार ने कहा कि उनके मामले में कोई लिखित शिकायत नहीं हुई है।
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